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Tourist Places Near Indore: इंदौर से 200 किमी दूर बुरहानपुर में छिपी है हिस्ट्री, किले का कुंडी भंडारा है मिस्ट्री

 MP Tourist Place: बुरहानपुर एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर है, जो मध्यप्रदेश में स्थित है। यह शहर अपनी ऐतिहासिक धरोहरों और सुंदर वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। शाही किला, कुंडी भंडारा और हमाम खाना जैसी ऐतिहासिक धरोहरें पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।

ताप्ती नदी के तट पर स्थित शाही किले का विशाल उद्यान और दीवान-ए-खास।

प्रदेश पत्रिका बुरहानपुर। महाराष्ट्र की सीमा पर बसा मध्यप्रदेश का बुरहानपुर जिला न केवल सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, बल्कि ऐतिहासिक धरोहरों से भी परिपूर्ण है। ऐसी धरोहरों को करीब से देखने और जानने का शौक रखने वालों को एक बार बुरहानपुर का भ्रमण अवश्य करना चाहिए। विशेष रूप से सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के तट पर स्थित ईरानी और मुगल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना शाही किला पर्यटकों को खूब लुभाता है।

इस किले में मौजूद खास तरह से बनवाया गया हमाम खाना भी पर्यटकों को आश्चर्य चकित कर देता है। इस किले का निर्माण यूं तो फारुखी वंश के शासकों ने 1422 ईस्वी में कराया था, लेकिन उसके बाद लंबे समय तक यह मुगल शासक अकबर, शाहजहां आदि के आधिपत्य में रहा।

यहीं हुई थी मुमताज की मृत्यु

शाही किला आगरा में ताजमहल का निर्माण कराने वाले मुगल शासक शाहजहां और उनकी बेगम मुमताज महल के प्रेम का साक्षी भी रहा है। बेगम मुमताज महल की मृत्यु सात जून 1631 को इसी किले में शाहजहां की चौदहवीं संतान को जन्म देते समय हुई थी। आगरा में ताजमहल का निर्माण पूर्ण होने पर सन 1632 में मुमताज महल का शव यहां से निकाल कर ताजमहल में दफनाया गया था।

किले में पांच किमी दूर से पहुंचता था पानी

‌ शाही किले में पेयजल और दैनिक उपयोग के लिए पानी करीब पांच किमी दूर लालबाग क्षेत्र स्थित कुंडी भंडारे के माध्यम से पहुंचता था। यह कुंडी भंडारा जमीन के अंदर 80 फीट नीचे मौजूद भूमिगत नहर है, जो बिना किसी मोटर पंप के शाही किले और पूरे नगर में पेयजल पहुंचाती थी। इसका पानी हिमालय से निकलने वाली गंगा के बाद सबसे शुद्ध पाया गया है।

जानकारों के अनुसार शाही हमाम में एक ओर की दीवार से गर्म पानी और दूसरी ओर की दीवार से ठंडा पानी आता था। बीच में बने कुंड में खस, केसर और सुगंधित पुष्प डाले जाते थे। इसी में बेगम मुमताज महल स्नान करती थीं। इसकी दीवारों और छत पर आकर्षक चित्रकारी की गई थी, जो आज भी मौजूद है।


दीवान-ए-आम व खास में लगता था दरबार

इतिहासकारों के अनुसार सन 1627 में जहांगीर की मृत्यु के बाद शाहजहां ने गद्दी संभाली थी। मार्च 1630 में दक्खन में मची उथल पुथल को शांत करने के उद्देश्य से शाहजहां बुरहानपुर आए थे। करीब दो साल तक वे शाही किले में रहे और यहीं से देशभर की सत्ता का संचालन किया।

शाही किले में अब भी दरबार-ए-खास और दरबार-ए-आम मौजूद हैं, जहां बैठ कर शाहजहां दरबार लगाते थे। इनके सामने ताजमहल की तरह उद्यान हैं, जहां पानी के फव्वारे चलते थे। इसके अलावा ताप्ती तट पर चार मंजिला भव्य महल था। हालांकि वर्तमान में इसके जर्जर होने के कारण प्रवेश बंद कर दिया गया है।

लाइट एंड साउंड शो के माध्यम से मिल रही जानकारी

बुरहानपुर आने वाले पर्यटकों को शाही किला, शाहजहां-मुमताज और जिले की अन्य धरोहरों की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए पर्यटन विभाग ने शाही किले के दीवान-ए-आम के पास लाइट एंड साउंड सिस्टम लगाया गया है। रात के समय रंगीन लाइटें चालू होने पर यह किला और भी आकर्षक नजर आता है। साउंड सिस्टम से पर्यटकों को हर स्थान व इतिहास की जानकारी मिल जाती है। इसके साथ ही शहर के प्रसिद्ध व्यंजनों की जानकारी भी दी जा रही है।


इस तरह पर्यटक पहुंच सकते हैं बुरहानपुर

वायुमार्ग से बुरहानपुर पहुंचने के लिए सबसे करीब एयरपोर्ट इंदौर में है। वहां से बस अथवा निजी वाहन से करीब 200 किमी का सफर तय कर बुरहानपुर पहुंचा जा सकता है। ट्रेन के माध्यम से आने वाले पर्यटक मुंबई-दिल्ली और मुंबई-इलाहाबाद रेल मार्ग पर चलने वाली ट्रेनों से पहुंच सकते हैं।


बुरहानपुर का मुंबई, दिल्ली, आगरा, वाराणसी, ग्वालियर, कटनी, जबलपुर, भोपाल जैसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों और शहरों से सीधा रेल संपर्क है। इसके अलावा सड़क मार्ग से महाराष्ट्र राज्य की सीमा से लगा होने के कारण भुसावल, जलगांव, औरंगाबाद आदि के लिए बहुत अच्छी सड़क है। बुरहानपुर से भोपाल के मध्य दूरी वाया इंदौर 367 किमी है।


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