आदिवासियों के सामने बुरहानपुर प्रशासन ने स्वीकार किया - अवैध रूप से खारिज किए गए दावों की पुनः जांच होगी, बैल-ट्रैक्टर को अवैध रूप से ज़प्त नहीं किया जाएगा।
बुरहानपुर के 15 हजार से ज्यादा आदिवासी हुए लामबंद - वन अधिकार कानून को कुचल कर आदिवासियों को अवैध रूप से बेदखल करने के खिलाफ दी चेतावनी और 1.5 घंटे तक किया अधिकारियों से सवाल
प्रदेश पत्रिका :- बुरहानपुर ज़िले के 10 हज़ार से भी ज्यादा आदिवासी महिला-पुरुषों ने जागृत आदिवासी दलित संगठन व एकता संगठन के नेतृत्व में लामबंद हुए। वन विभाग लगभग 8000 परिवारों के दावों को खारिज होने का मौखिक दावा कर रहा है, और फसल बोवाई की तैयारी कर रहे कानूनी दावेदारों को जगह-जगह धमकियाँ दी जा रही है, लोगों के ट्रैक्टर अवैध रूप से जप्त किए जा रहें हैं । 8000 आदिवासी परिवारों के वन अधिकार दावों को बिना सूचना, बिना कारण, और बिना अपील का अवसर दिए खारिज कर कानून और नियमों की धज्जियां उड़ाई गई हैं !
आदिवासियों द्वारा मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को प्रशासन द्वारा कानून के उल्लंघन को लेकर एक विस्तृत ज्ञापन जिला प्रशासन के ADM के माध्यम से सौंपा गया । ज्ञापन देने के बाद संगठन कार्यकर्ताओं द्वारा प्रशासन से कई देर तक ज्ञापन में लिखित मुद्दों पर सवाल जवाब किया। आदिवासियों ने दावा खारिज होने और उसकी कानूनी प्रक्रिया के बारे में किए गए सवाल का प्रशासन के अधिकारी कोई जवाब नहीं दे पाए। आदिवासियों द्वारा अवैध रूप से खारिज किए गए दावों की पुनः जांच की जाए, और खेती के सीजन में किसी भी दावेदार के बैल जोड़ी, ट्रैक्टर न किया जाए, ऐसा लिखित आश्वासन की मांग की, जिस पर ADM ने मात्र मौखिक आश्वासन दिया। यदि प्रशासन अपने आश्वासन पर खरी नहीं उतरती है, तो आदिवासियों ने इससे बड़ा आंदोलन की चेतावनी दी।
आन्दोलनकारियों ने बताया कि यह वही वन विभाग है जो 2022–23 में स्वयं 10–15 हज़ार एकड़ में अवैध कटाई और लकड़ी की तस्करी में खुद लिप्त था। आज वही विभाग 8000 आदिवासी परिवारों को उनके वैधानिक अधिकारों से बेदखल करने का दुस्साहस कर रहा है! इस पर वक्ताओं ने तीखा सवाल भी उठाया - अगर सरकार ने वन अधिकार कानून और 13 दिसंबर 2005 की लकीर को सही ढंग से लागू किया होता, तो क्या 2022–23 में इतनी तस्करी मुमकिन होती? वन अधिकार कानून को लागू हुए 17 साल बीत चुके हैं, लेकिन बुरहानपुर में आज भी प्रशासन और वन विभाग उसकी खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं!
भारत सरकार और मध्य प्रदेश शासन के स्पष्ट दिशा-निर्देशों को दरकिनार कर, जिला प्रशासन आदिवासियों के अधिकारों को कुचल रहा है। मंच से वक्ताओं ने कहा कि - वन अधिकार कानून और नियमों के अनुसार, हर वन अधिकार दावे की जांच और उस पर निर्णय ग्राम सभा द्वारा लिया जाना चाहिए। वक्ताओं ने बताया, अगर किसी दावे को ग्राम सभा ने पास किया हो, तो बिना कारण खारिज नहीं किया जा सकता है। काग़जों में कमी हो, तो वापस ग्राम सभा को भेजनी चाहिए। वन अधिकार कानून, उसके नियम और भारत सरकार, मध्य प्रदेश सरकार के निर्देशों के अनुसार, किसी भी दावे को खारिज करने से पहले दावेदार को लिखित सूचना और अपील का अवसर दिया जाना अनिवार्य है। वक्ताओं ने बताया कि पहले कार्यक्रम वे जिला कलेक्टर कार्यालय में प्रशासन को कानून सिखाने करने वाले थे, लेकिन कलेक्टर कार्यालय में आने से पहले ही रोक लिया ! इसलिए आज हम यहा से ही प्रशासन को कानून सिखा रहे हैं - अगर आज नहीं प्रशासन नहीं सीखती है, तो हम फिर सीधा कलेक्टर कार्यालय ही जायेंगे!
जब तक पूरी कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक किसी को ज़मीन से बेदखल नहीं किया जा सकता – लेकिन बुरहानपुर में हजारों परिवारों के दावों को बिना ग्राम सभा की प्रक्रिया, बिना सूचना, और बिना अपील के अवसर के खारिज कर दिया गया है। इन दावेदारों को अब वन विभाग द्वारा बेदखली की धमकियाँ दी जा रही हैं, जो न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि आदिवासी आदिवासियों के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों पर सीधा हमला है! अपने संवैधानिक और कानूनी अधिकारों को लेने का संकल्प लेते हुए कई आदिवासी गीत भी गाए गए।
ज्ञापन में यह मांग की गई कि सभी खारिज किए गए दावों की पुनः जांच हो और उन्हें ग्राम सभाओं को लौटाया जाए। हर दावेदार को लिखित सूचना और अपील का पूरा अवसर दिया जाए। साथ ही, वन विभाग द्वारा की जा रही अवैध कार्यवाहियों और बेदखली की धमकियों को तुरंत रोका जाए। आंदोलनकारियों ने यह भी मांग की कि इस पूरे मामले में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत सख्त कार्यवाही की जाए। मंच पर ADM ने सार्वजानिक तौर पर आश्वासित किया कि इन मांगों पर कार्यवाही होगी - सभी अवैध रूप से खारिज किए गए दावों की पुनः जांच की जाएगी, और वन विभाग द्वारा किसी के भी बैल - ट्रैक्टर अवैध रूप से जप्त नहीं किए जाएंगे।
आदिवासियों ने प्रशासन से इस सम्बंध में लिखित पत्र भी मांगे हैं। यदि प्रशासन के द्वारा इस पर कार्यवाही नहीं होती है, तो इससे ज्यादा संख्या में आदिवासी उग्र आंदोलन करेंगे। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पेसा एवं वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित टास्क फोर्स को भी यह ज्ञापन भेजा जाएगा। जागृत आदिवासी दलित संगठन व आदिवासी एकता संगठन के साथ इस आंदोलन में पूर्व बुरहानपुर विधायक शेरा भैया भी समर्थन देने आए।
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