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1 जुलाई, 2025 को जिला बुरहानपुर में नए आपराधिक कानूनों (भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम) के तहत आम जन के लिए किए गए कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान दिए गए हैं:



1. भारतीय न्याय संहिता (BNS) - IPC का स्थान:

 राजद्रोह का अंत: अब 'राजद्रोह' जैसा अपराध नहीं होगा। इसकी जगह 'भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों' के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है।

  महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर विशेष ध्यान: यौन उत्पीड़न, बलात्कार और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए और कठोर दंड का प्रावधान किया गया है, जिसमें कुछ मामलों में मृत्युदंड तक शामिल है।

 सामूहिक लिंचिंग: मॉब लिंचिंग को एक अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है और इसके लिए 7 साल तक की कैद या आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक का प्रावधान है।

 छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा: कुछ छोटे-मोटे अपराधों (जैसे सार्वजनिक उपद्रव, मामूली चोरी) के लिए पहली बार दोषी ठहराए जाने पर सामुदायिक सेवा का प्रावधान है, जिससे जेल में भीड़ कम होगी।

  विवाह के बहाने यौन संबंध बनाना: शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने को अब अपराध माना जाएगा और इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है।

  धोखाधड़ी में वृद्धि: धोखाधड़ी की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है और इसके लिए सजा भी बढ़ाई गई है।

2. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) - CrPC का स्थान:

  जीरो एफआईआर (Zero FIR): अब किसी भी पुलिस स्टेशन में, भले ही अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में न हुआ हो, जीरो एफआईआर दर्ज कराई जा सकेगी। बाद में इसे संबंधित पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।

  ई-एफआईआर (E-FIR): कुछ विशिष्ट अपराधों के लिए ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करने की सुविधा उपलब्ध होगी।

  फॉरेंसिक जांच अनिवार्य: 7 साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों में फॉरेंसिक जांच अनिवार्य कर दी गई है, जिससे सबूतों की सटीकता बढ़ेगी।

 चार्जशीट दाखिल करने की समय-सीमा: चार्जशीट दाखिल करने के लिए 90 दिन की समय-सीमा तय की गई है, जिसे अदालत 90 दिन और बढ़ा सकती है। कुल 180 दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होगी।

 निचली अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग: अब पुलिस हिरासत, न्यायिक हिरासत, गवाहों की गवाही और यहां तक कि कुछ मामलों में पूरी सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हो सकेगी, जिससे प्रक्रिया में तेजी आएगी।

 गिरफ्तारी का डिजिटल रिकॉर्ड: पुलिस को गिरफ्तारी का डिजिटल रिकॉर्ड रखना होगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी।

 भगोड़ों की संपत्ति जब्त: यदि कोई आरोपी गिरफ्तार नहीं होता है और फरार है, तो उसकी संपत्ति जब्त करने का प्रावधान आसान किया गया है।

3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) - भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का स्थान:

  डिजिटल साक्ष्य की स्वीकार्यता: ईमेल, व्हाट्सएप चैट, एसएमएस, कंप्यूटर रिकॉर्ड और अन्य इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड जैसे डिजिटल साक्ष्य को अब कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य माना जाएगा।

  प्रारंभिक साक्ष्य की भूमिका: मौखिक साक्ष्य की तुलना में दस्तावेजी और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को अधिक महत्व दिया जाएगा।

 फॉरेंसिक साक्ष्य पर जोर: फॉरेंसिक साक्ष्य की विश्वसनीयता को और मजबूत किया गया है।

  हस्ताक्षर और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर: इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर को भी कानूनी मान्यता दी गई है।

आम जन के लिए प्रभाव:

  त्वरित न्याय: इन कानूनों का उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक कुशल और त्वरित बनाना है।

  पारदर्शिता में वृद्धि: डिजिटल रिकॉर्ड और फॉरेंसिक जांच पर जोर देने से पारदर्शिता बढ़ेगी।

  पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण: महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

  पुलिस जवाबदेही: पुलिस की जवाबदेही बढ़ाने के प्रावधान किए गए हैं।

  नागरिक अधिकारों की सुरक्षा: राजद्रोह जैसे कानूनों को हटाकर नागरिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पुलिस बल के प्रशिक्षण, बुनियादी ढांचे के उन्नयन और न्यायिक प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता होगी। जिला बुरहानपुर में भी इन प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे होंगे।

नागरिकों को सलाह दी जाती है कि वे इन नए कानूनों के बारे में जानकारी प्राप्त करें ताकि वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों से अवगत रहें। स्थानीय पुलिस विभाग या कानूनी सलाहकारों से संपर्क करके अधिक विशिष्ट जानकारी प्राप्त की जा सकती है।


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