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बुरहानपुर जिला अस्पताल: प्रसूता और नवजात की मौत, लापरवाही पर सवाल

 बुरहानपुर जिला अस्पताल में प्रसूता और नवजात की मौत ने लापरवाही का मुद्दा उठाया। जांच रिपोर्ट पर सवाल, परिजनों ने की निष्पक्ष जांच की मांग। पूरी खबर पढ़ें।


प्रदेश पत्रिका बुरहानपुर जिला अस्पताल एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह बेहद दुखद और गंभीर है। 11 मार्च को फतहपुर बोरंगांव की एक प्रसूता को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तीन दिन तक भर्ती रहने के बाद भी उसकी सामान्य डिलीवरी कराने की कोशिश की गई, जबकि बच्चे का वजन 4 किलो से ज्यादा होने के कारण यह संभव नहीं था। हालत बिगड़ने पर आनन-फानन में ऑपरेशन किया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। ऑपरेशन के दौरान नवजात की मौत हो गई, और प्रसूता की हालत भी इतनी खराब हो गई कि उसे निजी अस्पताल रेफर करना पड़ा। दुर्भाग्य से, निजी अस्पताल में पहुंचते ही प्रसूता ने भी दम तोड़ दिया। इस घटना ने जिला अस्पताल के डॉक्टरों की कार्यशैली और व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

घटना का पूरा विवरण

फतहपुर बोरंगांव की इस प्रसूता को प्रसव पीड़ा शुरू होने पर जिला अस्पताल लाया गया था। परिजनों का कहना है कि तीन दिनों तक डॉक्टरों ने सामान्य डिलीवरी का भरोसा दिलाया, लेकिन बच्चे का वजन ज्यादा होने की वजह से यह संभव नहीं था। जब प्रसूता की हालत बिगड़ने लगी, तब जाकर ऑपरेशन का फैसला लिया गया। ऑपरेशन के दौरान नवजात की मौत हो गई, और प्रसूता की हालत भी नाजुक हो गई। उसे तुरंत निजी अस्पताल भेजा गया, लेकिन वहां पहुंचते ही उसकी भी मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि अगर समय पर ऑपरेशन किया गया होता, तो शायद दोनों की जान बच सकती थी।

घटना के बाद जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने भी अपनी गलती स्वीकार की। उन्होंने माना कि ऑपरेशन में देरी हुई, जिसके कारण यह हादसा हुआ। मामला गंभीर होने पर कलेक्टर हर्ष सिंह ने अस्पताल का दौरा किया और जांच के आदेश दिए। सिविल सर्जन ने इस मामले की जांच के लिए एक टीम बनाई, जिसमें अस्पताल के ही आरएमओ डॉ. गौर, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मोहनीश गुप्ता और डॉ. आर्यन गडवाल शामिल थे। लेकिन परिजनों का कहना है कि जिन डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप है, उन्हीं को जांच का जिम्मा देना कहां तक उचित है?

जांच रिपोर्ट पर उठे सवाल

जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में प्रसूता की मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बताया और मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की। परिजनों का कहना है कि प्रसूता की मौत निजी अस्पताल में हुई, फिर जिला अस्पताल की टीम कैसे इस नतीजे पर पहुंची? हैरानी की बात यह है कि प्रसूता का पोस्टमॉर्टम तक नहीं कराया गया, जिससे मौत का असली कारण पता ही नहीं चल सका। जांच टीम में जिला अस्पताल से बाहर का कोई डॉक्टर शामिल नहीं था, और परिजनों के आरोपों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। परिजनों का गुस्सा इस बात पर भी है कि जांच में पारदर्शिता नहीं बरती गई और दोषियों को बचाने की कोशिश की गई।

जिला अस्पताल का पुराना रिकॉर्ड

यह पहली बार नहीं है जब बुरहानपुर जिला अस्पताल में ऐसी घटना हुई हो। पहले भी यहां कई प्रसूताओं की मौत के मामले सामने आ चुके हैं, और हर बार लापरवाही को इसका कारण बताया गया। परिजनों का कहना है कि अस्पताल में न तो समय पर इलाज मिलता है और न ही जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसके बावजूद, उच्च अधिकारी और जनप्रतिनिधि इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। हर बार जांच की औपचारिकता पूरी की जाती है, लेकिन दोषियों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती। इस घटना के बाद भी यही सवाल उठ रहा है कि क्या दोषियों को सजा मिलेगी या फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

परिजनों का दर्द और मांग

प्रसूता और नवजात की मौत से परिजन सदमे में हैं। उनका कहना है कि अगर डॉक्टरों ने समय पर सही कदम उठाया होता, तो उनकी बहू और बच्चे की जान बच सकती थी। वे इस मामले में निष्पक्ष जांच और दोषी डॉक्टरों पर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। परिजनों ने कलेक्टर हर्ष सिंह से अपील की है कि वे स्वयं इस मामले का संज्ञान लें और बाहर से विशेषज्ञों की टीम बनाकर जांच कराएं, ताकि सच सामने आ सके।


क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बच्चे का वजन 4 किलो से ज्यादा था, तो सामान्य डिलीवरी की कोशिश करना जोखिम भरा था। ऐसे मामलों में समय पर सिजेरियन सेक्शन करना जरूरी होता है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि प्रसूता की मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट हो सकता है, लेकिन बिना पोस्टमॉर्टम के यह दावा करना गलत है। जिला अस्पताल की ओर से पारदर्शी जांच न कराना और दोषियों को बचाने की कोशिश इस मामले को और संदिग्ध बनाती है।

क्या मिलेगा न्याय?

बुरहानपुर जिला अस्पताल में हुई इस घटना ने एक बार फिर स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को उजागर किया है। परिजनों का गुस्सा और दर्द जायज है, क्योंकि वे अपने प्रियजनों को खो चुके हैं। कलेक्टर हर्ष सिंह से लोगों को उम्मीद है कि वे इस मामले में सख्ती दिखाएंगे और दोषियों को सजा दिलवाएंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह सिर्फ एक और औपचारिकता बनकर रह जाएगा, और आम लोगों का भरोसा व्यवस्था से और कम हो जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या इस बार न्याय मिलेगा, या फिर यह घटना भी भुला दी जाएगी?



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