Tiger Rewilding Centre: कान्हा नेशनल के घोरेला के मैदान में संचालित है देश का पहला टाइगर रिवाइल्डिंग सेंटर, अनाथ व घायल शावकों को दी जाती है ट्रेनिंग…।
घायल व अनाथ शावकों का ट्रेनिंग सेंटर
मंडला के कान्हा नेशनल पार्क में अनाथ व घायल शावकों को ट्रेनिंग देकर जंगल में रहने के काबिल बनाया जा रहा है। वे स्वयं शिकार करना भी सीख रहे हैं। कान्हा में बाघों के संरक्षण के लिए रिवाइल्डिंग सेंटर की शुरुआत वर्ष 2005 में प्राकृतिक रूप से शावकों के संरक्षण के लिए की गई थी। यहां आज भी विशेषज्ञों की निगरानी में शावकों को शिकार करने का हुनर सिखाया जा रहा है। जब शावक पूरी तरह से जंगल में रहने योग्य प्रशिक्षित हो जाते हैं तो उन्हें स्वतंत्र रूप से छोड़ दिया जाता है। ये देश का पहला रिवाइल्डिंग सेंटर हैं। इसके बाद अन्य जगहों में शुरू हुए हैं।
बाघ शावकों को दी जाती है शिकार की ट्रेनिंग
कान्हा-मुक्की मार्ग पर घोरेला मैदान है जहां वर्ष 1974-76 के पहले गांव था। 22 परिवारों को विस्थापित कर मुक्की एवं धनियाझोर में बसाया गया। घोरेला के मैदान में रिवाइल्डिंग सेंटर चल रहा है। मां से बिछड़ने के बाद या घायल, अनाथ शावकों को रिवाइल्डिंग सेंटर घोरेला में रखा जा रहा है। यहां दो बाड़े बनाए गए हैं। इसमें वयस्क बाघ व शावकों को अलग रखा जाता है। वे प्राकृतिक रूप से विचरण कर शिकार करते हैं। उनकी गतिविधियों पर अधिकारी निगरानी करते हैं।
2005 में ऐसे हुई थी शुरूआत
वर्ष 2005 में 20-22 दिन के तीन बाघ शावकों की मां की मृत्यु हो गई। जिसके बाद उन्हें कान्हा में फीडिंग कराई गई। कुछ दिन बाद एक बाड़े में रखकर देखरेख शुरू की गई। शुरुआत में जिंदा मुर्गा बाघ शावकों के लिए बाड़े में छोड़ा गया। जिसका उन्होंने शिकार किया। फिर जिंदा बकरा और चीतल छोड़ा जाने लगा। लगभग तीन साल में शावक पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से शिकार करने के लिए तैयार हो गए। शावक के वयस्क होने पर दो फीमेल शावक को पन्ना टाइगर रिजर्व व मेल शावक को भोपाल वन विहार भेज दिया गया। इन शावकों के सुरक्षित देखरेख हो जाने के बाद रिवाइल्डिंग सेंटर की योजना बनी। रिवाइल्डिंग सेंटर वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ संदीप अग्रवाल की देखरेख में संचालित है।
वर्तमान में तीन शावकों की हो रही देखरेख
रिवाइल्डिंग सेंटर घोरेला में वर्तमान में चार शावकों की पालन पोषण किया जा रहा है। मई 2024 में दो बाघ शावक वनविहार भोपाल से कान्हा के रिवाइल्डिंग सेंटर घोरेला पहुंचाए गए थे। शावक 15 से 16 माह के अवस्था के हैं। 2024 में इनको रातापानी अभ्यारण से रेस्क्यू किया गया था। रिवाइल्डिंग सेंटर में बाघ शावकों को एक से डेढ़ वर्ष और रखा जाएगा। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संदीप अग्रवाल का कहना है कि अब तक एक दर्जन से अधिक शावक यहां पूर्ण रूप से प्रशिक्षित होकर कर निकल चुके हैं। वर्तमान में तीन शावकों की निगरानी की जा रही है। इनमें से एक वयस्क हो गया हैं। सामान्य तौर पर ढाई से तीन साल में बाघ शावक वयस्क हो जाते हैं। जैसे पूरी तरह सुरक्षित शिकार करने में सक्षम हो जाएंगे तो इन्हें भी दूसरे जगह स्थांतरित कर दिया जाएगा।
60 चीतल के शिकार करने का पैमाना
डॉ संदीप अग्रवाल ने बताया कि शावक के वयस्क होने के साथ उनके शिकार करने पर भी नजर रखी जाती है। जब एक वयस्क शावक 60 चीतल का स्वयं ही शिकार कर लेता है तो समझा जाता है कि वह जंगल में रहने लायक हो गया है। फिर उसे डिमांड के अनुसार टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया जाता है। टाइगर रिजर्व में फीमेल टाइगर की अधिक मांग रहती है। ताकि जनसंख्या वृद्धि में सहायक हो सके। इससे बाघ चिडिय़ा घर में कैद होने से बच जाते हैं।
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