
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्रीमती अर्चना चिटनिस ने कहा कि बरसात में बरसने वाले पानी को अपनी छत, मोहल्ला, खेत और गांव में हम कैसे संभाले, किस प्रकार धरती माता की प्यास बुझे? भूमिगत जल का पुनर्भरण करें। पेड़, पानी और मिट्टी को सहेजने के इस महती कार्य में अपनी भूमिका हम खुद तय करें, इस दिशा में मेरा हमेशा, निरंतर प्रयास रहा है-‘‘मैं क्या करूं, हम क्या करें और सब क्या करें।‘‘ ‘‘माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्या‘‘ के इस भाव से हम सब मिलकर सहेजे अपनी धरती मां को, आने वाली पीढि़यों के लिए!
श्रीमती अर्चना चिटनिस ने कहा कि बरसात का पानी सहेजेंगे तो भूमि में पानी होगा, भूमि में पानी हुआ तब ही तो हमारी नदियां सुजलाम रहेंगी। भूमि में और नदियों में पानी रहा तभी तो टंकियां भरेंगी, टंकियां भरेंगी तब घर-घर में नल से जल पहुंचेगा। पानी बचाने के लिए बुरहानपुर के शहरी क्षेत्र के घरों की छत से बहने वाले करोड़ों लीटर वर्षाजल को रूफ रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के माध्यम से जमीन में उतारना होगा।
श्रीमती चिटनिस ने कहा कि पानी सदैव से मनुष्य के चिंतन का विषय रहा है। आज हम जल संकट के दौर से गुजर रहे हैं। बेंगलुरु का उदाहरण हमारे सामने है। दूसरी ओर बुरहानपुर में एक बरसात के मौसम में करोड़ों लीटर पानी घरों की छतों से बहकर निकल जाता है। इस पानी को रूफ रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के ज़रिए सीधे ट्यूबवेल में उतारा जा सकता है या सोकपिट बनाकर भूजल स्तर तक पहुँचाया जा सकता है। साथ ही हमें रोज़मर्रा के कामों में पानी का उपयोग मितव्ययिता से करना होगा। तभी हम जल संकट का सामना कर सकेंगे।

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