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नेपा मिल लीज विवाद: सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल का बड़ा एक्शन, CMD को 3 दिन में मांगे 4 सवालों के जवाब

 



बुरहानपुर। खंडवा संसदीय क्षेत्र के सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल ने नेपा मिल लीज विवाद पर बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने मिल के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर (CMD) को पत्र लिखकर चार महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जानकारी मांगी है और कहा है कि “तीन दिन में जवाब दें या फिर जवाबदेही तय मानी जाए। 

यह मामला पिछले साल भी काफी सुर्खियों में रहा था, जब नेपा मिल द्वारा अपनी लीज की दरें अचानक कई गुना बढ़ा दी गई थीं। इसके विरोध में व्यापारियों ने मौन रैली निकालकर अपना आक्रोश भी दर्ज कराया था।

क्या है पूरा मामला?

नेपा मिल के पास कई भूखंड हैं, जिन पर व्यावसायिक व आवासीय निर्माण हुआ है। पिछले वर्ष मिल प्रबंधन ने लीज नवीनीकरण के लिए दरें तय की थीं – ₹600/वर्गफुट व्यावसायिक और ₹300/वर्गफुट आवासीय भूखंडों के लिए। यह दरें स्थानीय व्यापारियों और निवासियों के लिए अत्यधिक बोझिल साबित हुईं। विरोध स्वरूप मौन रैली निकाली गई, जिसकी गूंज प्रशासन तक पहुंची।अंततः लीज दरों को घटाकर ₹140 प्रति वर्गफुट कर दिया गया। लेकिन अब सवाल ये है — क्या ये फैसला नियम के मुताबिक लिया गया या मनमर्जी से?

सांसद ने उठाए ये 4 सटीक सवाल


1. लीज दरें तय करने का आधार क्या है?
– कौन सी नियमावली के अंतर्गत दरें तय की गईं? उसकी प्रमाणित प्रति दी जाए।
2. ₹140/वर्गफुट की दर निर्धारित करने का अधिकार किसके पास है?
– क्या यह दर सरकार द्वारा अनुमोदित है या नेपा मिल का निजी फैसला?
3. 2032 तक लीज नवीनीकरण के बाद लीजधारकों की कानूनी स्थिति क्या होगी?
– क्या फिर से नई लीज बनेगी या सिर्फ किरायेदार की स्थिति में रहेंगे?
4. क्या 10 साल से कम अवधि के लिए किसी अन्य सरकारी संस्था, नगर पालिका, निगम निगम ने इतनी ऊंची लीज प्रीमियम दर वसूली है?
– तुलनात्मक डेटा प्रस्तुत किया जाए।

सांसद ने कहा – जनता से अन्याय नहीं होने दूंगा


सांसद पाटिल ने कहा, नेपा मिल जनता की ज़मीन पर काम कर रही है, जनता पर लोड डालना स्वीकार्य नहीं। अगर 3 दिन में जवाब नहीं आया, तो मैं संसद से लेकर सड़क तक आवाज़ उठाऊंगा।

नेपा मिल – कभी अखबारी कागज का गौरव, आज सवालों के घेरे में


एक दौर था जब नेपा मिल देश की पहली अखबारी कागज फैक्ट्री मानी जाती थी। बुरहानपुर का नाम देशभर में नेपा के कारण प्रसिद्ध हुआ। आज वही मिल न सिर्फ आर्थिक संकट से जूझ रही है, बल्कि प्रबंधन के फैसले सवालों के घेरे में हैं।

हमसे हमारे अधिकार छीने जा रहे हैं


स्थानीय निवासी और व्यापारी कहते हैं हमने पीढ़ियों से इस ज़मीन पर व्यापार और जीवन चलाया है। अब हमसे प्रीमियम के नाम पर जबरन वसूली हो रही है।



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