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इंदौर में 11 करोड़ का फर्जी बिल घोटाला:ड्रेनेज विभाग में 169 फर्जी बिल लगाए, ब्लैक लिस्टेड कंपनी के संचालक पर FIR

 



प्रदेश पत्रिका:- इंदौर नगर निगम में ड्रेनेज विभाग में करोड़ों के घोटाले का एक और मामला सामने आया है। निगम के सहायक लेखापाल आशीष तायडे की शिकायत पर एमजी रोड पुलिस ने मेसर्स नींव कंस्ट्रक्शन के संचालक मोहम्मद साजिद के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज किया है।

169 फर्जी बिलों से 11 करोड़ की हेराफेरी

नगर निगम की जांच में सामने आया कि साजिद ने 185 बिल प्रस्तुत किए थे, जिनमें से 169 बिल फर्जी पाए गए। इन बिलों के माध्यम से 11 करोड़ रुपए से अधिक का गैरकानूनी भुगतान कराया गया। केवल 16 बिल वास्तविक निकले। जैसे ही यह घोटाला उजागर हुआ, निगम अधिकारियों ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कराया।

पहले से ब्लैकलिस्टेड थी कंपनी, फिर भी मिली ठेकेदारी

नगर निगम की रिपोर्ट के अनुसार, मेसर्स नींव कंस्ट्रक्शन को इससे पहले भी अनियमितताओं के चलते ब्लैकलिस्ट किया गया था। इसके बावजूद, ठेकेदार ने कूटरचित दस्तावेजों के जरिए फिर से ठेके हासिल किए और घोटाले को अंजाम दिया।


28 करोड़ के ड्रेनेज घोटाले से भी जुड़े तार

करीब एक साल पहले नगर निगम में 28 करोड़ रुपए के ड्रेनेज घोटाले में पांच फर्मों को ब्लैकलिस्ट किया गया था और इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। यह घोटाला 200 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट का हिस्सा था। इस प्रोजेक्ट में 40 से अधिक ठेकेदार शामिल थे, लेकिन जांच में केवल पांच के नाम सामने आए थे।

नगर निगम में 28 करोड़ रुपए के ड्रेनेज घोटाले में पांच फर्मों को ब्लैकलिस्ट किया गया था।

कैसे हुआ फर्जीवाड़ा?

सरकार द्वारा हर ठेके पर नगर निगम और ठेकेदारों को जीएसटी का भुगतान करना होता है। नियमों के अनुसार, निगम को 2% और ठेकेदारों को 6-12% तक जीएसटी जमा करना पड़ता है।


  • 28 करोड़ के बिलों में निगम को 56 लाख रुपए (2% जीएसटी) जमा करना था।
  • ठेकेदारों ने भुगतान प्रक्रिया में हेरफेर कर इस राशि को भी हड़प लिया।
  • गलत दस्तावेज और पे ऑर्डर में छेड़छाड़ कर लाखों का फर्जी भुगतान कराया गया।


2018-19 में हुआ था 'नाला टेपिंग घोटाला'

यह फर्जी बिलों का मामला ड्रेनेज सुधार के नाम पर बनाई गई सीवर लाइनों से जुड़ा है, जिसे ‘नाला टेपिंग प्रोजेक्ट’ कहा जाता है। 2018-19 में 200 करोड़ रुपए की लागत से यह काम शुरू हुआ था। शुरुआत में यह ठेका पांच-छह बड़ी कंपनियों को दिया गया था, लेकिन बाद में 40-50 अन्य ठेकेदारों को भी इसमें शामिल कर दिया गया।
इस प्रोजेक्ट के दस्तावेजों पर कई वरिष्ठ अधिकारियों के हस्ताक्षर पाए गए हैं, जिनमें तत्कालीन अपर आयुक्त संदीप सोनी, नगर शिल्पज्ञ कमल सिंह, कार्यपालन यंत्री अभय राठौर और कार्यालय अधीक्षक धर्मचंद पालीवाल के नाम शामिल हैं।
लेकिन इस घोटाले में पूरी प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया गया। ठेकेदारों से सीधे फाइलें लेकर उन्हें मंजूरी दी गई और फर्जी बिलों पर करोड़ों का भुगतान कर दिया गया।

निगम के कर्मचारियों की संलिप्तता की भी जांच

नगर निगम ने इस घोटाले की विस्तृत जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने की सिफारिश की है। मामले में अन्य अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है। साथ ही, सरकारी नुकसान की भरपाई के लिए साजिद की संपत्ति कुर्क करने की संभावना जताई जा रही है। पुलिस अब अन्य ठेकेदारों और नगर निगम के कर्मचारियों की संलिप्तता की भी जांच कर रही है।


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